Tuesday 9 April 2013

झारखंड में पंचायत राज के दो साल पर कार्यशाला

कार्यशाला में यूनिसेफ के राज्य प्रमुख श्री जाब जकारिया ने पंचायत प्रतिनिधियों से स्पष्ट कहा कि आप कोई एनजीओ या प्राइवेट संगठन नहीं बल्कि खुद सरकार हैं। इस तरह आप प्रोटोकोल में संबंधित पदाधिकारियों एवं प्रशासन से ऊपर हैं। जिस तरह एक सरकार केंद्र में और दूसरी सरकार राज्य में होती है, ठीक उसी तरह तीसरी सरकार गांवों में है और पंचायत प्रतिनिधि उस सरकार को चलाने वाले हैं।

 श्री जकारिया ने अपने विचारों का निष्कर्ष बताते हुए तीन बिदंुओं पर जोर डाला -
1. सरकार की तरह आचरण करें - (बिहेव लाइक गवर्नमेंट)
2. अपने सपनों की सूची बनाएं - (विजन)
3. अपनी उपलब्धियां सामने लाएं - (सक्सेस स्टोरीज)
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गर्भधारण, प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध पर कार्यशाला
झारखंड राज्य महिला आयोग व यूनिसेफ की ओर से गर्भधारण और प्रसव पूर्व निदान तकनीक लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994 पीसीपीएनडीटी अधिनियम पर राज्य स्तरीय सम्मेलन सह कार्यशाला का आयोजन किया गया।
विशेष अतिथि यूनिसेफ, झारखण्ड प्रमुख श्री जाॅब जकारिया ने चिंता जताते हुए कहा कि हमारे देश में कानूनन लिंग परीक्षण प्रतिबंधित है। पीसीपीएनडीटी एक्ट इसके लिए खास तौर पर बनाया गया है। पर कई कारणों से यह प्रभावी नहीं है। यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर साल जन्म लेने से पहले ही साढ़े पांच लाख बेटियां मार दी जाती हैं। झारखण्ड में प्रतिवर्ष 11,000 लड़कियों का जन्म नहीं होने दिया जाता। पहले यहां बच्चों का लिंगानुपात राष्ट्रीय औसत से अधिक था। पर अब तेजी से गिर रहा है। वर्ष 2001 से 2011 के बीच इसमें 21 फीसदी की कमी आयी है। शहरी क्षेत्रों में स्थिति ज्यादा गंभीर है। यहां यह 69 अंक गिरा है। सबसे बुरी स्थिति बोकारो, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, रामगढ़, गिरिडीह रांची जिले की है।
श्री जकारिया ने कहा कि हम सब इस सच से वाकिफ हैं। पर मसला यह होता है कि आखिर हम कर क्या सकते हैं? दरअसल मूल मुद्दा है परिवार, समाज में महिलाओं के अधिकारों के बारे में सोच बदलने का। हमें पुरुषवादी मनोवृत्ति से उपर उठना होगा। बाल विवाह, घरेलू हिंसा, बाल श्रम और ऐसे ही अन्य दोषों के निषेध के लिए तमाम कायदे-कानून हैं। पर इतने भर से हल नहीं होने वाला। हमें महिलाओं, लड़कियों के हित में अपने नजरिये में बदलाव भी लाना होगा। पीसीपीएनडीटी एक्ट भर के लागू करने से लाभ नहीं है। बाल विवाह, दहेज प्रथा, बाल श्रम जैसे अपराध और उनके लिए बने कानूनों को भी साथ-साथ प्रभावी ढंग से लागू किए जाने पर ध्यान देना होगा। झारखण्ड सरकार ने 2012 में बिटिया बचाओ कार्यक्रम चलाया था। इस तरह के प्रयासों का स्वागत करना चाहिए और ऐसे ही काम लगातार होने चाहिए। 
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पंचायतों को मिली शक्तियां
रांची: 18 फरवरी 2013 - पंचायत प्रतिनिधियों को विभिन्न विभागों द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर आज विकास भारती परिसर में राज्यस्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम हुआ। यह कार्यक्रम विकास भारती तथा झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए कहा कि झारखंड में जब अन्य संस्थाओं की कार्यक्षमता को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हों, तब पंचायती राज संस्थाओं से ही कोई नई उम्मीद की जा सकती है। उन्होंने कहा कि पंचायत प्रतिनिधियों को राज्य के त्वरित विकास की इच्छाशक्ति लेकर काम करना चाहिए ताकि राज्य को नया नेतृत्व मिल सके। REPORT

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